भारत में सदियों से देखा जाता है कि जब भी किसी दंपत्ति के संतान नहीं होती है , तो सबसे पहले पत्नी को दोषी ठहराया जाता है और उसे बांझ कहकर ताने दिये जाते हैं ।तमाम छोटे शहरों में तो पुरुषों की जांच तक नहीं करवाते और सारा ।दोष महिला पर मांड दिया जाता ।जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक दशक में महिलाओं की तुलना में पुरुषों में नि : संतानता के मामले बढ़े हैं ।इसके पीछे तेजी से हो रहे शहरीकरण , मिलावट की वजह से तमाम रासायनों का शरीर में जाना , तनाव , जरूरत से ज्यादा काम , तेज लाइफस्टाइल और देर शादी होना बड़े कारण है ।.
विदेशों में शोध
कनाड़ा में दो शोध किये गए इसमें वर्ष 1984 में 18 से 29 साल की .उम्र में 5 फीसदी कपल इनफरटाइल पाये गये ।वहीं 2010 में यह संख्या बढ़कर 13 .7 फीसदी हो गई ।मशहूर पत्रिका ब्रिटिश मेडिकल जर्नल के मुताबिक पिछले पचास साल में दुनिया भर में मौं में शुक्राणुओं की संख्या आधी रह गई है ।यह एक चिंताजनक बातव है ।21वीं सदी में पिता बनने की हसरत पुरुषों के लिए तनाव का कारण है ।
पुरुषों में शुक्राणु कम होने के कारण
गर्मी भी है हानिकारक
ऐसे व्यक्ति जो सीधे गरम वातावरण के सम्पर्क में रहते हैं तथा काम करते हैं - जैसे हलवाई , सुनार जहां भट्टी की गर्मी से ।अण्डकोष में शुक्राणु की संख्या में गिरावट देखी गई है ।
बचपन में ध्यान
बच्चों में देखें दोनों अण्डकोष थैली में हैं या नहीं अन्यथा कभी कभी अण्डकोष एक अथवा दोनों थैली में नीचे नहीं आते हैं तथा शरीर की गर्मी से अंडकोष खराब हो जाते हैं वो बच्चे भी बड़े होकर नि : संतानता के शिकार होते हैं ।
न रखें जेब में मोबाइल
मोबाइल से निकलने वाले रेडियेशन तथा निरन्तर पैरों ।पर लैपटॉप रख कर काम करने वाले पुरुषों में भी शुक्राणुओं की कमी तथा निःसानता का खतरा ।
नशे से रहें दूर
व्यसन - शराब धूम्रपान एवं अन्य कोई नशा करने पर भी स्पर्म कम हो जाते हैं ।जरूरत से ज्यादा शराब पीने से स्पर्म की संख्या में कमी आ जाती है ।साथ ही कॅरिअर के चलते शादी की उम्र बढ़ जाने से स्पर्म की संख्या व गुणवत्ता में कमी आ जाती है।
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